Description
नीतिशास्त्र एवं सिविल सेवा , श्रीकांत भगत द्वारा लिखित एक अत्यंत उपयोगी एवं विचारोत्तेजक पुस्तक है। सिविल सेवा या प्रशासन में नैतिक मूल्यों का ह्रास राष्ट्र की प्रगति में तो बाधक है ही साथ ही साथ इसने प्रशासन के लिए भी अविश्वसनीयता के संकट को जन्म दे दिया है। समाज में नैतिकता के प्रति उदासीनता ने इस संकट को और प्रचंड बना दिया है। क्या नैतिकता इस समस्या का समाधान हो सकता है? सिविल सेवा में नैतिकता की इसी खोज को लेकर नीतिशास्त्र विषय के महत्वपूर्ण मुद्दों पर यह पुस्तक आधारित है। यह पुस्तक पाठकों के अंदर नैतिकता के प्रति संवेदना एवं रुझान विकसित करने की क्षमता रखती है। यह पुस्तक सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए नीतिशास्त्र से संबंधित सामान्य अध्ययन पेपर का एक बेहतरीन विकल्प है। यह पुस्तक UPSC द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा के लिए ही नहीं बल्कि सभी State PSC द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षाओं के नीतिशास्त्र (Ethics) पेपर का समाधान है। नीतिशास्त्र एक ऐसा विषय है जिसकी पढ़ाई सामान्यतः स्कूलों में नहीं होती इसलिए अभ्यर्थियों को इस विषय की तैयारी करने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
नीतिशास्त्र और सिविल सेवा पुस्तक को लेखक ने इस प्रकार लिखा है कि सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों को इस पुस्तक को पढ़ करके नीतिशास्त्र पेपर से संबंधित सारे प्रश्नों के उत्तर आसानी से मिल जाएँ अर्थात नीतिशास्त्र पेपर से संबंधित सारे doubt clear हो जाएँ।
प्रमुख विशेषताऐं:
1. सामान्यतः भाषागत एवं अवधारणात्मक जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए इस पुस्तक को सरल भाषा में लिखा गया है। जो कि नीतिशास्त्र से संबंधित जटिल अवधारणाओं को भी समझने योग्य बनाती है।
2. इस पुस्तक में उदाहरण एवं केस अध्ययन विषयवस्तु को अभिरूचिपूर्ण एवं जीवंत बनाते हैं। जिससे विषय वस्तु मतिष्क में छप जाता है। अतः रटने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
3. Content Motivation इस पुस्तक का एक अति विशिष्ट पहलू है। अर्थात इस पुस्तक के विषय वस्तु को इस प्रकार लिखा गया है कि पाठक में विषयवस्तु के प्रति अभिरुचि बनी रहे।
4. प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी है। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद अभ्यर्थी UPSC या State PSC में पूछे जा रहे प्रश्नों का उत्तर लिखने में सहज महसूस करेंगे।
5. हिन्दी माध्यम में लिखी गई इस पुस्तक में कुछ महत्वपूर्ण उद्धरण, परिभाषा एवं तथ्यात्मक सामग्री को छोड़ कर बाकी सभी बातें लेखक की मौलिक भाषा में लिखी गई हैं। इसे किसी उपस्थिति रचना का रूपांतरण नहीं कह सकते।
6. इस पुस्तक को लिखने में लेखक ने लगभग अंतर्राष्ट्रीय स्तर की 22 पुस्तकें, 30 से ज्यादा शोधपत्र एवं कई धर्म ग्रंथों की टिप्पणियों का संदर्भ लिया है परंतु लेखक ने विषय वस्तु तथा अवधारणाओं से कोई छेड़-छाड़ नहीं किया है।.
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